उसने देखा बच्ची कहानी सुनते सुनते ही सो गई थी।
धीरे से उसने बच्ची के बालोँकी दोनोँ रेशमी रिबनें खोलीं | फिर एक-एक करके हेरपिन्स निकालीं, बाल खुले कर दिए और सिर पर हाथ फेरा, गाल पर हलका सा बोसा दिया | कहनेका मन हुआ ‘गुड नाईट, डार्लिंग!’
सुबहकी फ्लाईट से जाना था बच्ची को |
मेज पर पड़ी पुरानी डबल-लाइनवाली नोटका पन्ना फफडाया | वह खडा हुआ | होमवर्ककी किताब ठीक करके बेगमें रखते उसका ध्यान गया | आड़े-टेढ़े अक्षरसे अंग्रेजीमें पेन्सिलसे लिखा हुआ था : ‘फेरी पिंक कुड नोट फ्लाय, फॉर हर विंग्स वर वेट |’ – पंख भीग गए थे इसलिए फेरी पिंक उड़ नहीं पाई थी | फेरी पिंक परी थी | नदीके किनारे रहती थी | लाइलेकके फूलों के बीच उड़ती थी | वह उड़ती थी इसलिए फूल हिलते थे और पंखुड़ियोंसे शबनम झरती थी , और शबनमकी एक बूँद झरती वहाँ एक तितली पंख फफड़ाकर उड़ जाती थी |
उसने किताब बंद की और बेगमें रखी |
उसने कहा था : ‘बेटा, जल्दी से सो जाओ, कल जल्दी उठकर तैयार होना है |’
‘क्यों ?’
‘कल जल्दी उठना है | फिर तुम उठोगी नहीं |’
‘उठूँगी, पहले मुझे कहानी सुनाओ |’
वह कहानी बनाने लगा : ‘एक बच्ची थी …’
‘मेरे जैसी ?’
‘हाँ, तुम्हारे जैसी | मगर, उसके बाल तुमसे लम्बे थे.’
‘कितने लम्बे , डेडी ?’
‘बहुत लम्बे |’
‘वह चश्मे पहनती थी ?’
वह हसा | फिर याद आया, मम्मी चश्मे पहनती थी इसलिए. वह ग़मगीन हो गया. संयत हो गया | फिर हँसा | ‘तुम्हेँ कैसे पता चल गया?’
‘मुझे नहीं पता |’
‘अच्छा | वह चश्मे पहनती थी ?’
‘हमारी मम्मी भी चश्मे पहनती है न ?’ ‘हाँ, मम्मी चश्मे पहनती थी | मगर, बच्चीके चश्मे मम्मीके चश्मोंसे छोटे थे |’
‘वह देख नहीं पाती थी ?’
‘देख पाती थी. मगर, ज़्यादा नहीं |’
‘चश्मा पहनने के बाद रो नहीं सकते ?’
‘रो सकते हैं |’
‘फिर ?’
‘ – फिर वह बच्ची एक बादल पर बैठ गई | बादलमें बहुत पानी था |’
‘बच्ची भीग गई ?’
‘नहीं बेटा, वह बच्ची बादल पर बैठ गई और बादल आसमानमें बह रहा था | एक छोटा हरा पंछी आया | पंछी बहुत थक गया था | उड़-उड़कर पंख हिलाता डुलाता वह बादल पर बैठकर थोड़ी साँस लेने लगा, और …’
‘वह रास्ता भूल गया था ?’
‘हाँ, वह रास्ता भूल गया था |’
‘रात हो गई ?’
‘नहीं, रात नहीं थी. पर, अन्धेरा हो गया था इसलिए पंछी घबरा रहा था | वह बच्चीके पास जाकर बैठ गया |’
‘उसे डर लगता था ?’
‘डर तो लगता है न ? इतने बड़े आसमानमें अकेला अकेला उड़ता रहता तो डर तो लगता न ?’
‘लगता है’
‘इसलिए बच्चीने पंछीको पूछा: पंछी तुम कहाँ रहते हो?’
‘पंछी कहाँ रहता था ?’
‘पंछी बोला, मैं तो एक तारेमें रहता हूँ | वह तारा यहाँ से बहुत दूर है |’
‘कितना दूर ?’
‘बहुत दूर | मामाजीका घर है न, उतना दूर |’
‘पंछी रोने लगा ?’
‘नहीं , वह बोला बच्ची, मैं रास्ता भूल गया हूँ | मुझे बादल पर बैठने दोगी ? बच्ची बोली : हाँ, ज़रूर बैठने दूँगी | फिर पंछी बैठा | और बादल आगे बहने लगा |’
‘वह उड़ उड़कर थक गया था ?’
‘हाँ बेटा, वह बहुत उड़ उड़कर थक गया था, इसलिए बादल पर बच्चीके साथ बैठ गया |’
‘फिर ?’
फिर चश्मेवाली बच्चीने हरे पंछीसे पूछा : ‘पंछी, तुम्हे गाना आता है ?’
पंछी बोला : ‘मुझे तो गाना आएगा ही न!’
बच्चीने पूछा : ‘मुझे एक गाना सुनाओगे ?’
‘पंछीओंको गीत गाना आता है, डेडी ?’
‘इस पंछीको आता था बेटा , उसने गाया |’
‘बच्चीको मज़ा आया ?’
‘बहुत मज़ा आया | बच्ची बहुत खुश हो गई | खडी हो गई | बहुत नाची | वह नाची इसलिए बादल हिला और बादालमें से बारिश गिरने लगी |’
‘तुम कितनी अच्छी बातें करते हो, डेडी!’
‘तुम्हेँ अच्छी लगी ?’
‘हाँ , बहुत अच्छी लगी | फिर क्या हुआ ?’
‘बहु बारिश गिरी | बादल खाली हो गया | बारिश नदी पर पड़ी और पर्बतों पर पड़ी | ज़मीन पर गिरी, पेड़ों पर पड़ी, पत्तों पर पड़ी |’
‘पेड़ भी भीग गए ?’
‘हाँ , एक पेड़ था | उसके पत्ते पीले पड़ गए थे | उसमें एक केसरिये रंगकी चींटी रहती थी |’
‘वह भी भीग गई ?’
‘हाँ , केसरी चींटी पीले पत्ते पर सो रही थी | हवा चली इसलिए पत्ता टूटने लगा , चींटीके पर भीग गए | वह उड़ न पाई | फिर वह रोने लगी |’
‘चींटी क्यों रोने लगी ?’
‘उसके पर भीग गए न बेटा , इसलिए वह उड़ न पाई तो रोने लगी |’
‘डेडी, फेरी पिंकके पर भीग गए थे | वह भी रो रही थी |’
‘यह चींटी भी फेरी पिंककी तरह रोने लगी | कहने लगी : मेरे पर भीग गए हैं, अब मैं उड़ नहीं पाउंगी |’
‘बच्चीने उसके पर पोंछ दिए ?’
‘नहीं | वहाँ एक मोटा मेंढक बैठा था | उसका गला हिलता था और आँखें बाहर निकल आई थी | चींटी के पर भीग गए न , तो वह हसने लगा |’
‘फिर ?’
‘फिर सूरज चमका | आसमान गर्म हो गया | नदी गर्म हो गई | पर्बत गर्म हो गए | ज़मीन गर्म हो गई इसलिए चींटीके पर भी सूख गए |’
‘चींटी उड़ गई ?’
‘धुप निकली तो चींटीके पर भी सूख गए | और मेंढककी आँखें धूपमें बंद हो गईं | चींटीके पर धूपमें झगमग होने लगे | फिर केसरी चींटी उड़ने लगी | हरा पंछी गाने लगा | चश्मेवाली बच्ची नाचने लगी ‘
‘कितना सुन्दर है, डेडी !’
‘फिर सामने एक मेघधनुष्य खुल गया |’
‘मेघधनुष्य मतलब ?’
‘बारिश पड़ती है और सूरज चमकता है तब आसमानमें सात हल्के रंगोंका एक पुल बन जाता है | ज़ू में है न वैसे जापानिज़ पुल जैसा |’
‘फिर ?’
‘केसरी चींटी उस मेघधनुष्यके रंगीन पुल पर जाकर खेलने लगी | हरा पंछी उस पुल पर होकर उड़ गया | वह रहता था उस तारे की ओर उड़ गया |’
‘और बच्ची, डेडी ?’
‘बच्ची भी सो गई ,बेटा | चलो, अब तुम भी सो जाओ |’
‘बच्ची कहाँ सो गई ?’
‘उसके डेडीके पास | कहानी ख़तम हो गई |’
‘चलो | अब सो जाओ – गुड नाईट |’
‘गुड नाईट , डेडी !’
रेशमी रिबन और हेरपिन्स उसने बच्चिकी छोटी बेगमें रखे. पेन्सिलसे होमवर्क की हुई किताब रख दी गई | केसरी चींटी भेघधनुष्य पर खेल रही थी | हरा पंछी उड़ गया था – तारोंके देश में | चश्मेवाली बच्ची चश्मा, रिबन और हेरपिन्स निकालकर डेडीको गुड नाइट कहकर सो गई थी | कहानी ख़तम हो गई थी |
बच्चीको सुबह की फ्लाईट से भेज देना था | वह अकेली जानेवाली थी | यहाँसे बैठकर जानेवाली थी नौ बजे | साड़े बारह बजे चेन्नई उतर जानेवाली थी | चेन्नई उसकी मम्मी उसे लेने आनेवाली थी |
उसका वेकेशन भी ख़तम होने आया था |
-और उसे डेडी के साथ रहने आनेकी कोर्ट की दी हुई मोहलत भी |
~ चन्द्रकान्त बक्षी (1932 – 2006)
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